वीर रस की परिभाषा, उदाहरण, स्थाई भाव | veer ras ki paribhasha

आज हम वीर रस के बारे में जानेंगे की वीर रस क्या है,  वीर रस की परिभाषा तथा वीर रस के उदाहरण. वीर रस की परिभाषा लिखते हुए एक उदाहरण लिखिए. वीर, भयानक और रौद्र रस की प्रधानता होती है. वीर रस के दोहे .वीर रस की चौपाई. वीर रस उदाहरण मराठी. वीर रस का उदाहरण झांसी की रानी, इन सभी सवालों के जावाब यहाँ मिलेंगे पूरी जानकारी के लिए निचे देखे.

वीर रस की परिभाषा

युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हमारे हृदय में निर्मित स्थायी भाव ‘उत्साह‘ के जाग्रत होने के प्रभावस्वरूप जो भाव उत्पन्न होता। उसे ‘वीर रस’ कहा जाता है। वीर रस का स्थायी भाव उत्साह है।

वीर रस का उदाहरण –

“सौमित्र से धननाद का रव
अल्प भी न सहा गया।
निज शत्रु को देखे बिना,
उससे तनिक न रहा गया।।”

स्पष्टीकरण

1. स्थायी भाव उत्साह
2. विभाव  (i) आलम्बन मेघनाद (धननाद)
(ii) आश्रय लक्ष्मण
(iii) उद्दीपन धननाद का रव
3. अनुभाव युद्धोत्सुक होना।
4. संचारी भाव आवेग आदि।

वीर रस के अन्य उदाहरण

वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो।
तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं।

अराति सैन्य सिन्धु में सुवाड़वाग्नि से जलो।
प्रवीर हो जयी बनो, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।।

जो तुम्हारि अनुसासन पावों कंदुक इव ब्रह्माण्ड उठावों।

काचे घट जिमि डारों फोरी, सकऊँ मेरू मुसक जिमि तोरी।

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