आज हम जानेंगे की रस किसे कहते हैं, रस की परिभाषा एवं उनके प्रकार लिखिए. रस के प्रकार कितने होते हैं, हास्य रस किसे कहते हैं. रस के प्रकार और स्थायी भाव, शृंगार रस किसे कहते हैं. रस कितने प्रकार के होते हैं class 10, रस सिद्धांत स्वरूप और विश्लेषण. रस कितने प्रकार के होते हैं किसी एक की सोदाहरण व्याख्या कीजिए सभो सवालो के जव्वाब जानने के लिए निचे पढ़े.
रस किसे कहते हैं
कविता, कहानी, उपन्यास आदि को पढ़ने या सुनने से एवं नाटक को देखने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे ‘रस‘ कहते हैं। रस काव्य की आत्मा है।
आचार्य विश्वनाथ ने साहित्य-दर्पण में काव्य की परिभाषा देते हुए लिखा है—’वाक्यं रसात्मकं काव्यं‘ अर्थात् रसात्मक वाक्य काव्य है। रस की निष्पत्ति के सम्बन्ध में भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में व्याख्या की है- ‘विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः‘ अर्थात् विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।
रसों के आधार भाव हैं। भाव मन के विकारों को कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं— स्थायी भाव और संचारी भाव। यही काव्य के अंग कहलाते हैं।
रस के स्थायी भाव
रस रूप में पुष्ट या परिणत होनेवाला तथा सम्पूर्ण प्रसंग में व्याप्त रहनेवाला भाव स्थायी भाव कहलाता है। स्थायी भाव नौ माने गये हैं—रति, हास, शोक, क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा, विस्मय और निर्वेद। वात्सल्य नाम का दसवाँ स्थायी भाव भी स्वीकार किया जाता है।
रति – स्त्री-पुरुष के परस्पर प्रेम-भाव को रति कहते हैं।
हास – किसी के अंगों, वेश-भूषा, वाणी आदि के विकारों के ज्ञान से उत्पन्न प्रफुल्लता को हास कहते हैं।
शोक – इष्ट के नाश अथवा अनिष्टागम के कारण मन में उत्पन्न व्याकुलता शोक है।
क्रोध – अपना काम बिगाड़नेवाले अपराधी को दण्ड देने के लिए उत्तेजित करनेवाली मनोवृत्ति क्रोध कहलाती है।
उत्साह – दान, दया और वीरता आदि के प्रसंग से उत्तरोत्तर उन्नत होनेवाली मनोवृत्ति को उत्साह कहते हैं।
भय – प्रबल अनिष्ट करने में समर्थ विषयों को देखकर मन में जो व्याकुलता होती है, उसे भय कहते हैं।
जुगुप्सा – घृणा उत्पन्न करनेवाली वस्तुओं को देखकर उनसे सम्बन्ध न रखने के लिए बाध्य करनेवाली मनोवृत्ति को जुगुप्सा कहते हैं।
विस्मय – किसी असाधारण अथवा अलौकिक वस्तु को देखकर जो आश्चर्य होता है, उसे विस्मय कहते हैं।
निर्वेद – संसार के प्रति त्याग-भाव को निर्वेद कहते हैं।
वात्सल्य – पुत्रादि के प्रति सहज स्नेह-भाव वात्सल्य है।
विभाव
जो व्यक्ति, वस्तु, परिस्थितियाँ आदि स्थायी भावों को जागरित या उद्दीप्त करती हैं, उन्हें विभाव कहते हैं।
विभाव दो प्रकार के होते हैं।
- आलम्बन विभाव
- उद्दीपन विभाव
आलम्बन विभाव
स्थायी भाव जिन व्यक्तियों, वस्तुओं आदि का अवलम्ब लेकर अपने को प्रकट करते हैं, उन्हें आलम्बन विभाव कहते हैं। आलम्बन विभाव के दो भेद हैं-
- आश्रय
- विषय
आश्रय – जिस व्यक्ति के मन में रति आदि स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, उसे आश्रय कहते हैं।
विषय – जिस व्यक्ति या वस्तु के कारण आश्रय के चित्त में रति आदि स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, उसे विषय कहते हैं।
उद्दीपन विभाव
भाव को उद्दीप्त अथवा तीव्र करने वाली वस्तुएँ, चेष्टाएँ आदि को उद्दीपन विभाव कहते हैं।
उदाहरणार्थ – सुन्दर, पुष्पित और एकान्त उद्यान में शकुन्तला को देखकर दुष्यन्त के हृदय में रति भाव जागृत होता है। यहाँ शकुन्तला आलम्बन विभाव है और पुष्पित तथा एकान्त उद्यान उद्दीपन विभाव। दुष्यन्त आश्रय है। प्राय: नायक एवं नायिका आलम्बन विभाव होते हैं। शृंगार के उद्दीपन विभाव प्राय: बसन्त काल, उद्यान, शीतल मन्द-सुगन्धित पवन, भ्रमर-गुंजन इत्यादि होते हैं।
अनुभाव
आश्रयगत आलम्बन की उन चेष्टाओं को जो उसे स्थायी भाव का अनुभव कराती हैं, अनुभाव कहते हैं। भाव कारण और अनुभाव कार्य हैं।
अनुभाव चार प्रकार के होते हैं –
- कायिक
- मानसिक
- आहार्य
- सात्विक
कायिक अनुभाव – आँख, भौंह, हाथ आदि शरीर के अंगों के द्वारा जो चेष्टाएँ की जाती हैं।
मानसिक अनुभाव – मानसिक चेष्टाओं को मानसिक अनुभाव कहते हैं।
आहार्य अनुभाव – वेशभूषा से जो भाव प्रदर्शित किये जाते हैं।
सात्विक अनुभाव – शरीर के सहज अंग विकार।
संचारी भाव
आश्रय के चित्त में उत्पन्न होनेवाले अस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव कहते हैं। उदाहरणार्थ, शृंगार रस के प्रकरण में शकुन्तला से प्रीतिबद्ध दुष्यन्त के चित्त में उल्लास, चपलता, व्याकुलता आदि भाव संचारी भाव हैं। इन्हें व्यभिचारी भाव भी कहते हैं.
संचारी भाव की संख्या कितनी है
संचारी भाव की संख्या 33 मानी गयी है-
- निर्वेद
- आवेग
- दैन्य
- श्रम
- मद
- जड़ता
- उग्रता
- मोह
- विबोध
- स्वप्न
- अपस्मार
- गर्व
- मरण
- आलस्य
- अमर्ष
- निद्रा
- अवहित्था
- उत्सुकता
- उन्माद
- शंका
- स्मृति
- मति
- व्याधि
- संत्रास
- लज्जा
- हर्ष
- असूया
- विषाद
- धृति
- चपलता
- ग्लानि
- चिन्ता
- वितर्क
स्थायी भाव उत्पन्न होकर नष्ट नहीं होते और संचारी भाव पानी के बुलबुलों की भाँति बनते-मिटते रहते हैं। प्रत्येक रस का स्थायी भाव नियत है, जबकि एक ही संचारी भाव अनेक रसों के साथ रह सकता है। इन्हीं विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से स्थायी भाव रस दशा को प्राप्त होता है। ( Ras ke prakar )
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रस और उनके स्थाई भाव
क्रम संख्या | रस | स्थाई भाव |
1. | श्रृंगार रस | रति |
2. | हास्य रस | हास |
3. | करुण रस | शोक |
4. | रौद्र रस | क्रोध |
5. | वीर रस | उत्साह |
6. | भयानक रस | भय |
7. | विभित्स रस | जुगुप्सा |
8. | अद्भुत रस | विस्मय |
9. | शान्त रस | निर्वेद |
10. | वत्सल रस | वात्सल्य |
श्रृंगार रस
सहृदय के चित्त में रति नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है तो वह शृंगार रस का रूप धारण कर लेता है। उसके दो भेद होते हैं—संयोग और वियोग, इन्हें क्रमश: संभोग एवं विप्रलम्भ भी कहते हैं। श्रृंगार रस के उदाहरण-
संयोग श्रृंगार
नायक और नायिका के मिलन का वर्णन संयोग शृंगार कहलाता है।
संयोग श्रृंगार रस के उदाहरण,
कौन हो तुम वसंत के दूत
विरस पतझड़ में अति सुकुमार;
घन तिमिर में चपला की रेख
तापन में शीतल मंद बयार!
इसमें रति स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव हैं—श्रद्धा (विषय) और मनु (आश्रय)। उद्दीपन विभाव हैं—एकान्त प्रदेश, श्रद्धा -की कमनीयता, कोकिल-कण्ठ, रम्य परिधान। संचारी भाव हैं—आश्रय मनु के हर्ष, चपलता, आशा, उत्सुकता आदि भाव।
इस प्रकार विभावादि से पुष्ट रति स्थायी भाव शृंगार रस की दशा को प्राप्त हुआ है।
वियोग श्रृंगार
जिस रचना में नायक और नायिका के मिलन का अभाव रहता है और विरह वर्णन होता है, वहाँ वियोग शृंगार होता है।
वियोग शृंगार के उदाहरण-
मेरे प्यारे जलद से कंज से नेत्रवाले।
जाके आये न मधुबन से औ न भेजा संदेशा।
मैं रो रो के प्रिय-विरह से बावली हो रही हूँ।
जा के मेरी सब दुख-कथा श्याम को तू सुना दे॥
इस छन्द में विरहिणी राधा की विरह-दशा का वर्णन किया गया है। रति स्थायी भाव है। राधा आश्रय और श्रीकृष्ण आलम्बन है । शीतल, मन्द पवन और एकान्त उद्दीपन विभाव हैं। स्मृति, रुदन, चपलता, आवेग, उन्माद आदि संचारियों से पुष्ट श्रीकृष्ण से मिलन के अभाव में यहाँ वियोग शृंगार रस का परिपाक हुआ है।
हास्य रस किसे कहते हैं
अपने अथवा पराये परिधान, वचन अथवा क्रिया-कलाप आदि से उत्पन्न हुआ हास नामक स्थायी भाव विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से हास्य रस का रूप ग्रहण करता है।
हास्य रस के उदाहरण-
मातहिं पितहिं उरिन भये नीके।
गुरु ऋण रहा सोच बड़ जी के॥
परशुराम-लक्ष्मण संवाद में लक्ष्मण की यह हास्यमय उक्ति है। हास्य इसका स्थायी भाव है। परशुराम आलम्बन हैं। उनकी झुंझलाहट उद्दीपन है। हर्ष, चपलता आदि संचारी भाव हैं। इन सबसे पुष्ट हास स्थायी हास्य रस दशा को प्राप्त हुआ है।
करुण रस किसे कहते हैं
करुण रस की परिभाषा – शोक स्थायी भाव, विभाव, विस्मय—किसी असाधारण अथवा अलौकिक वस्तु को देखकर जो आश्चर्य होता है, उसे विस्मय कहते हैं। शोक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से करुण रस की दशा को प्राप्त होता है। (karun ras ka udaharan)
करुण रस का उदाहरण –
जथा पंख बिनु खग अति दीना।
मनि बिनु फनि करिबर कर हीना॥
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही।
जौ जड़ दैव जियावइ मोही॥
यहाँ लक्ष्मण की मूर्छा पर राम-विलाप प्रस्तुत किया गया है। शोक स्थायी भाव है। लक्ष्मण आलम्बन और राम आश्रय हैं। राम के उद्गार अनुभाव हैं। हनुमान् का विलम्ब उद्दीपन एवं दैन्य, चिन्ता, व्याकुलता, स्मृति आदि संचारी हैं। इन सबसे पुष्ट शोक स्थायी करुण रस दशा को प्राप्त हुआ है।
रौद्र रस किसे कहते हैं
विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से क्रोध नामक स्थायी भाव रौद्र रस का रूप धारण कर लेता है। रौद्र रस के उदाहरण-
ज्वलल्ललाट पर अदम्य,तेज वर्तमान था .
प्रचण्ड मान भंग जन्य, क्रोध वर्तमान था.
पुच्छ-बाहु व्योम में उछालते हुए.
अराति असह्य अग्नि-दृष्टि डालते हुए.
उठे कि दिग-दिगन्त में अवर्ण्य ज्योति छा गई।
कपीश के शरीर में प्रभा स्वयं समा गई।
इस पद में लंका में हनुमानजी की पूँछ के जलाये जाने पर उनकी प्रतिक्रिया का वर्णन है। यहाँ क्रोध स्थायी भाव है। हनुमान् आश्रय हैं। शत्रु आलम्बन है। राक्षसों का सामने पड़ना उद्दीपन, पूँछ का आकाश में उछालना, अग्नि-दृष्टि डालना, तन का तेज आदि अनुभाव हैं। आवेश, चपलता, उग्रता आदि संचारी भाव हैं। इन सबसे पुष्ट क्रोध स्थायी भाव ने रौद्र रस का रूप ग्रहण किया है।
वीर रस किसे कहते हैं
विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से उत्साह नामक स्थायी भाव वीर रस की दशा को प्राप्त होता है। वीर रस की कविता निचे देखें
वीर रस का उदाहरण –
आये होंगे यदि भरत कुमति-वश वन में,
तो मैंने यह संकल्प किया है मन में.
उनको इस शर का लक्ष्य चुनूँगा क्षण में,
प्रतिषेध आपका भी सुनूँगा रण में।
इस पद में उत्साह स्थायी भाव है। लक्ष्मण आश्रय और भरत आलम्बन हैं। उनके वन में आगमन का समाचार उद्दीपन है। लक्ष्मण के वचन अनुभाव हैं। उत्सुकता, उग्रता, चपलता आदि संचारी भाव हैं। इनसे पुष्ट उत्साह स्थायी भाव वीर रस दशा को प्राप्त हुआ है।
भयानक रस किसे कहते हैं
विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से भय नामक स्थायी भाव भयानक रस का रूप ग्रहण करता है। भयानक रस के उदाहरण –
लंका की सेना तो कपि के गर्जन रव से काँप गई।
हनूमान के भीषण दर्शन से विनाश ही भाँप गई।
उस कंपित शंकित सेना पर कपि नाहर की मार पड़ी।
त्राहि-त्राहि शिव त्राहि-त्राहि शिव की सब ओर पुकार पड़ी।
यहाँ ‘भय स्थायी भाव है। लंका की सेना आश्रय एवं हनुमान् आलम्बन हैं। गर्जन-रव और भीषण-दर्शन उद्दीपन हैं। काँपना, त्राहि-त्राहि पुकारना आदि अनुभाव हैं। शंका, चिन्ता, सन्त्रास आदि संचारी भाव हैं। इनसे पुष्ट भय स्थायी भाव भयानक रस को प्राप्त हुआ है।
वीभत्स रस किसे कहते हैं
विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से जुगुप्सा (घृणा) स्थायी भाव वीभत्स रस का रूप ग्रहण करता है। वीभत्स रस के उदाहरण-
कोउ अंतड़िनि की पहिरि माल इतरात दिखावत।
कोउ चरबी लै चोप सहित निज अंगनि लावत।।
कोउ मुंडनि लै मानि मोद कंदुक लौं डारत।
कोउ रुंडनि पै बैठि करेजी फारि निकारत।
उपर्युक्त पद में जुगुप्सा स्थायी भाव है। श्मशान का दृश्य आलम्बन है। अंतड़ी की माला पहनकर इतराना, चोप सहित शरीर पर चर्बी का पोतना, हाथ में मुण्डों को लेकर गेंद की तरह उछालना आदि उद्दीपन विभाव हैं। दैन्य, ग्लानि, निर्वेद आदि संचारी भाव हैं। इन सबसे पुष्ट जुगुप्सा स्थायी भाव वीभत्स रस दशा को प्राप्त हुआ है।
अद्भुत रस किसे कहते हैं
विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से विस्मय नामक स्थायी भाव अद्भुत रस की दशा को प्राप्त होता है। विविध प्रकरणों में लोकोत्तरता देखकर जो आश्चर्य होता है, उसे विस्मय कहते हैं।
विस्मय रस के उदाहरण –
इहाँ उहाँ दुइ बालक देखा। मति भ्रम मोरि कि आन बिसेखा।
तन पुलकित मुख वचन न आवा। नयन मूँदि चरनन सिर नावा।।
यहाँ विस्मय स्थायी भाव है। माता कौशल्या आश्रय तथा यहाँ-वहाँ दो बालक दिखायी देना आलम्बन है। ‘तन पुलकित मुख वचन न’ में रोमांच और स्वरभंग अनुभाव हैं। जड़ता, वितर्क आदि संचारी हैं, अत: यहाँ अद्भुत रस है।
शान्त रस किसे कहते हैं
विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से निर्वेद नामक स्थायी भाव शान्त रस का रूप ग्रहण करता है।
शांत रस का उदाहरण—
अबलौं नसानी अब न नसैहौं।
राम कृपा भव निसा सिरानी जागे फिर न डसैहौं।
पायो नाम चारु चिंतामनि उर करतें न खसैहौं।
श्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी चित कंचनहिं कसैहौं।
परबस जानि हँस्यो इन इन्द्रिन निज बस है न हँसैहौं।
मन मधुकर पन करि तुलसी रघुपति पद कमल बसैहौं।
यह निर्वेद स्थायी भाव है। सांसारिक असारता और इन्द्रियों द्वारा उपहास उद्दीपन हैं। स्वतन्त्र होने तथा राम के चरणों में रति होने का कथन अनुभाव है। धृति, वितर्क, मति आदि संचारी हैं। इन सबसे पुष्ट निर्वेद शान्त रस को प्राप्त हुआ है।
वात्सल्य (वत्सल) रस किसे कहते हैं
वात्सल्य नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से ‘वात्सल्य रस’ सम्पुष्ट होता है। उदाहरण–
हररावें दुलरावें मल्हावै, जोइ सोइ कछु गावें।
मेरे लाल को आव री निंदरिया, काहे न आन सुवावै।
तू काहैं नहीं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै।
कबहुँ पलक हरि मूंदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन है कै रहि, करि करि सैन बतावै।
इहि अन्तर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुर्लभ, सो नंद-भामिनी पावै।
इसमें वात्सल्य स्थायी भाव है। यशोदा आश्रय और कृष्ण आलम्बन हैं। यशोदा का गीत गाना आदि अनुभाव हैं। इन सबसे पुष्ट वात्सल्य स्थायी भाव वत्सल रस दशा को प्राप्त हुआ है।
तो आज हमने आपको रस के सभी भेद के बारे में बताया की ( ras kise kahate hain ). ras ke udaharan तथा रस से सम्बंधित सभी जानकारी हमने आपको देने का प्रयास किया. अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ share जरुर करे.