रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल
सन् 1911 में रदरफोर्ड ने परमाणु का एक मॉडल प्रस्तुत किया जिसके अनुसार परमाणु का द्रव्यमान (इसके इलेक्ट्रॉनों के द्रव्यमान को छोड़कर) तथा समस्त धन आवेश परमाणु के केन्द्र पर 10-15 मीटर की कोटि की त्रिज्या के नाभिक में संकेन्द्रित है। नाभिक के चारों ओर 10-10 मीटर की कोटि की त्रिज्या के खोखले गोले में इलेक्ट्रॉन वितरित रहते हैं जिनका कुल ऋण आवेश, नाभिक के धन-आवेश के बराबर है। रदरफोर्ड मॉडल
रदरफोर्ड ने यह परिकल्पना की कि ये इलेक्ट्रॉन स्थिर नहीं हैं बल्कि नाभिक के चारों ओर विभिन्न कक्षाओं (orbits) में घूमते रहते हैं (चित्र 4)। इसके लिये आवश्यक अभिकेन्द्र बल (centripetal force), इलेक्ट्रॉन तथा नाभिक के बीच स्थिरवैद्युत आकर्षण बल से प्राप्त होता है। परन्तु, रदरफोर्ड मॉडल में दो कमियाँ पायी गयीं :
(i) परमाणु के स्थायित्व के सम्बन्ध में : नाभिक के चारों ओर घूमते इलेक्ट्रॉन में अभिकेन्द्र त्वरण होता है। विद्युत गतिविज्ञान (electrodynamics) के अनुसार, त्वरित आवेशित कण ऊर्जा (विद्युतचुम्बकीय तरंगें) उत्सर्जित करता है। अत: नाभिक के चारों ओर विभिन्न कक्षाओं में घूमते इलेक्ट्रॉनों से विद्युतचुम्बकीय तरंगें लगातार उत्सर्जित में होनी चाहिए।
इस प्रकार, इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा का ह्रास होने के कारण उनके वृत्तीय पथ की त्रिज्या लगातार कम होती जानी चाहिए और अन्त वे नाभिक में गिर जाने चाहिए। इस प्रकार परमाणु स्थायी ही नहीं रह सकता।
(ii) रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या के सम्बन्ध में : रदरफोर्ड मॉडल में इलेक्ट्रॉनों के वृत्तीय पथ की त्रिज्या के लगातार बदलते रहने से उनके घूमने की आवृत्ति भी बदलती रहेगी। इसके फलस्वरूप इलेक्ट्रॉन सभी आवृत्तियों की विद्युतचुम्बकीय तरंगें उत्सर्जित करेंगे, अर्थात् इन तरंगों का स्पेक्ट्रम संतत (continuous) होगा। परन्तु वास्तव में परमाणुओं के स्पेक्ट्रम संतत न होकर, रेखीय होते हैं अर्थात् उनमें बहुत-सी बारीक रेखाएँ होती हैं तथा प्रत्येक स्पेक्ट्रमी रेखा की एक निश्चित आवृत्ति होती है।
अत: परमाणु से केवल कुछ निश्चित आवृत्तियों की ही तरंगें उत्सर्जित होनी चाहिए, सभी आवृत्तियों की नहीं। इस प्रकार, रदरफोर्ड मॉडल रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या करने में असक्षम रहा। इन कमियों को नील बोहर ने क्वाण्टम सिद्धान्त के आधार पर दूर किया।