प्रकाश का विवर्तन | Prakash ka vivartan

प्रकाश का विवर्तन

यदि किसी प्रकाश-स्रोत तथा पर्दे के बीच कोई अपारदर्शी अवरोध (opaque obstacle), अथवा छिद्र (aperture), रख दिया जाये तो पर्दे
पर अवरोध की स्पष्ट छाया (shadow), अथवा छिद्र के कारण प्रदीप्त क्षेत्र (illuminated region) प्राप्त होता है। इससे यह पता चलता है कि प्रकाश ऋजु रेखा में चलता है।

परन्तु यदि अवरोध अथवा छिद्र का आकार बहुत छोटा हो (प्रकाश की तरंगदैर्घ्य की कोटि का) तो अवरोध अथवा छिद्र के किनारों पर प्रकाश ऋजुरेखीय पथ से विचलित हो जाता है अर्थात् किनारों पर प्रकाश आंशिक रूप से मुड़ जाता है। इस प्रकार प्रकाश ज्यामितीय छाया (geometrical shadow) में भी (जहाँ पर पूर्णतया अन्धकार रहना चाहिए था) पहुँच जाता है।

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विवर्तन किसे कहते हैं

अवरोध अथवा छिद्र के तीक्ष्ण किनारों पर प्रकाश के आंशिक रूप से मुड़ने को ‘विवर्तन‘ कहते हैं। अत: प्रकाश के विवर्तन की आवश्यक शर्त है कि अवरोध अथवा छिद्र का आकार प्रकाश की तरंगदैर्घ्य की कोटि का होना चाहिए। प्रकाश का विवर्तन तरंग-गति का एक लक्षण है। तरंगों का एक छोटे छिद्र द्वारा विवर्तन चित्र में दिखाया गया है।

प्रकाश का विवर्तन

एक समतल तरंगाग्र एक गत्ते में बने छोटे छिद्र की ओर बढ़ रहा है। तरंगाग्र का अधिकांश भाग गत्ते से परावर्तित होकर लौट जाता है तथा बीच का छोटा-सा भाग छिद्र में से होकर गुजरता है। जैसे ही तरंगाग्र का मध्य भाग छिद्र पर पहुँचता है, हाइगेन्स के सिद्धान्त के अनुसार, छिद्र नये तरंग-स्रोत का कार्य करने लगता है।

अत: छिद्र से गोलीय तरंगाग्र निकलता है जो कि उसी चाल से आगे बढ़ता है जिस चाल से समतल तरंगाग्र छिद्र पर आया था। हम यह जानते हैं कि समांग माध्यम में तरंगाग्र सदैव तरंग के संचरण की दिशा के लम्बवत् होता है। अत: जैसा कि चित्र से स्पष्ट है, छिद्र में से गुजरने पर तरंगें केवल सीधी ही नहीं निकल जातीं बल्कि मुड़ भी जाती हैं। यही ‘विवर्तन’ है।

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