किरचाफ का नियम ( Kirchhoff’s Laws) किरचाफ का प्रथम नियम, द्वितीय नियम

किरचाफ ने 1942 ई0 में दो नियम दिए जिनकी सहायता से हम किसी भी जटिल परिपथ के विभिन्न चालको के बीच धरा का वितरण ज्ञात कर सकते हैं. ये नियम निम्न प्रकार हैं.

किरचाफ का प्रथम नियम अथवा संधि नियम ( Kirchoff’s first Law or Junction rule)

किसी विद्युत परिपथ में किसी भी संधि पर मिलने वाली धाराओं का बिजगणितीय रूप शुन्य होता है, अर्थात ∑ i = 0 (शुन्य).

इस नियम को लगाते समय चिन्ह परिपाटी यह है की संधि की ओर आने वाली धारा धनात्मक तथा संधि से दूर जाने वाली धारा ऋणात्मक ली जाती है. किरचाफ का पहला नियम आवेश के संरक्षण को व्यक्त करता है. इसे किरचाफ का धारा नियम भी कहते हैं.

किरचाफ का दूसरा नियम अथवा पाश नियम (Kirchof’s Second Law or Loop Rule)

किसी परिपथ में प्रत्येक बंद पाश के विभिन खंडो में बहाने वाली धाराओं तथा संगत प्रतिरोधों के गुणनफल का बिजगणितीय योग उस पाश में लगने वाले बिद्युत बाहक बालो के बिजगणितीय योग के बराबर होता है. अर्थात, ∑i R = ∑E.

इस नियम को लगाते समय जब हम धारा की दिशा में चलते हैं तो धारा तथा संगत प्रतिरोध की गुणा को धनात्मक लेते हैं, तथा सेल के वैद्युत अपघट्य में ऋण-इलेक्ट्रोड से धन-इलेक्ट्रोड की ओर चलने  पर विद्युत् बाहक बल को धनात्मक लेते हैं.

किरचाफ का दूसरा नियम उर्जा के संरक्षण को व्यक्त करता है, इसे किरचाफ का वोल्टता नियम भी कहते हैं.


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