हिन्दी पत्र लेखन, पत्र लेखन के प्रकार | Patra Lekhan in Hindi

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हिन्दी पत्र लेखन

“कुंजी से खुल जाते, जैसे घर के द्वार।
पत्र प्रकट करता वैसे, मन के उद्गार।।

भाव यह है कि कुंजियाँ जैसे बन्द द्वार खोलती हैं, वैसे ही पत्र द्वारा मानव मन के द्वार स्वतः खुल जाते हैं। अत: मानव भावनाओं की अभिव्यक्ति भी पत्र-लेखन के द्वारा हो जाती है। पत्र द्वारा निश्चल विचार प्रकट होते हैं। पत्र-लेखन दो व्यक्तियों के द्वारा सम्भव है। इसके द्वारा वे एक-दूसरे के निकट आते हैं तथा उनका पारस्परिक सम्बन्ध भी दृढ़ होता है।

पत्र ही दूर रहने वाले व्यक्तियों की भावनाओं को संगम भूमि पर ले आता है। पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र तथा ऐसे ही अनेक सम्बन्धों की नींव को दृढ़ करता है।

पत्र लेखन

पत्र लेखन (एक कला) – वर्तमान में पत्र-लेखन एक कला का रूप ले चुकी है। पत्रों के माध्यम से मन के भाव सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त किए जाते हैं। इसी कारण पत्र का साहित्य में उपयोग होने लगा है। एक अच्छे पत्र के लिए कलात्मक सौन्दर्य बोध तथा आंतरिक भावनाओं को प्रकट करना आवश्यक है। पत्र लेखक के चरित्र, दृष्टिकोण, संस्कार, मानसिक स्थिति तथा आचरण आदि उभारते हैं।

अच्छे पत्र की विशेषताएं

(i) सरल भाषा – पत्र की भाषा सरल तथा बोलचाल की होनी चाहिए।

(ii) विचारों की स्पष्टता – लेखक के विचार सुलझे एवं स्पष्ट होने चाहिए।

(iii) संक्षिप्तता एवं सम्पूर्णता – पत्र संक्षिप्त होना चाहिए। पत्र में मुख्य बातें आरम्भ में होनी चाहिए।

(iv) बाहरी सजावट – पत्र का लेख-स्वच्छ तथा स्पष्ट हो, व्याकरण चिह्नों एवं नियमों का उचित प्रयोग हो।

हिन्दी पत्र लेखन के प्रकार

हिन्दी पत्र लेखन में सामान्य रूप से पत्र छ: भागों में विभक्त किए जा सकते हैं-

(1) पारिवारिक पत्र 

(2) व्यावहारिक पत्र

(3) आधिकारिक पत्र 

(4) व्यावसायिक पत्र

(5) सार्वजनिक पत्र

(6) कार्यालयीय पत्र

पारिवारिक पत्र

Patra Lekhan in Hindi : परिवार के सदस्य या सम्बन्धियों को लिखे जाते हैं। पत्र लिखने एवं पाने वालों के बीच गहरी आत्मीयता रहती है तथा सम्पूर्ण पत्र इस भावना से पूर्ण होता है। इन पत्रों में व्यक्ति अपने दूसरे परिवारीजनों से अपनी स्थिति, घर का हाल, किसी दुःख का वर्णन , कुछ सीख, बीते पलों का स्मरण अत्यंत आत्मीय ढंग से करता है। आत्मीयता तथा भावपूर्णता ही पारिवारिक पत्रों की आत्मा है।

व्यावहारिक पत्र

हिन्दी पत्र लेखन – सामाजिक प्राणी होने के कारण मानव के, समाज के अतिरिक्त अन्य लोगों से भी घनिष्ठ सम्बन्ध हो जाते हैं। उनसे भी सुख-दु:ख के सम्बन्ध स्थापित हो जाते । एक-दूसरे के सुख-दुःख में सहयोग करने लगते हैं। इनमें गुरु, मित्र, पड़ोसी अन्य लोग आते हैं। ऐसे सभी पत्र व्यावहारिक कहलाते हैं। इन पत्रों में औपचारिकता का ध्यान रखा जाता है। इनमें सहानुभूति, बधाई, अभिनन्दन एवं निमंत्रण पत्र आते हैं।

आधिकारिक पत्र

इस वर्ग में ऐसे पत्र आते हैं जो जनता द्वारा अधिकारियों को समय-समय पर लिखे जाते हैं तथा अधिकारियों द्वारा भी एक-दूसरे को प्रेषित किए जाते हैं। जैसे स्वास्थ्य अधिकारी, पोस्ट मास्टर, स्टेशन मास्टर आदि। इन पत्रों में जनता अपनी विभिन्न समस्याओं को अधिकारी गणों के सम्मुख रखती है तथा उनसे इन समस्याओं का निवारण करने की प्रार्थना करती है।

व्यावसायिक पत्र

ऐसे पत्र व्यावसायिक संस्थाओं के प्रबन्धकों की ओर से व्यवसाइयों को लिखे जाते हैं या एक व्यापारी संस्था की ओर से दूसरी संस्था की ओर से लिखे जाते हैं। इनमें आदेश पत्र, बिक्री पत्र एवं कर्मचारियों से सम्बन्धित पत्र होते हैं।

सार्वजनिक पत्र

ऐसे पत्र सार्वजनिक जीवन में प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण व्यक्तियों को लिखे जाते हैं। इनके माध्यम से हम अपनी भावनाओं को जन साधारण तक पहुँचा सकते हैं। इनमें केन्द्रीय या प्रांतीय मंत्री के नाम, किसी सार्वजनिक संस्था के अधिकारी के नाम पत्र, समाचार सम्पादक के लिए खुले पत्र एवं अभिनन्दन पत्र होते हैं Patra Lekhan in Hindi.

कार्यालयीय पत्र

ये पत्र राजकीय और सहायता पत्र संस्थाओं तथा कार्यालय द्वारा किसी व्यक्ति को किसी सहायता प्राप्त संस्था द्वारा कार्यालय को लिखे जाते हैं।

पारिवारिक पत्र (अंग)

हिन्दी पत्र लेखन के मुख्य बिंदु-

(1) प्रेषक का पता

(2) दिनांक

(3) सम्बोधन

(4) अभिवादन

(5) कलेवर

(6) स्वनिर्देश

(7) हस्ताक्षर

प्रेषक का पता : प्रेषक का पता-पत्र के दाँयी ओर सुन्दर स्पष्ट अक्षरों में लिखा जाना चाहिए। प्रथम पंक्ति में घर का नाम, संख्या तथा गली तथा मौहल्ले के विषय में पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।

कर्निका निवास
29, सतलुज कॉलोनी
जामनगर, गुजरात

दिनांक : पारिवारिक पत्रों में दिनांक (तिथि) प्रेषक के पते के नीचे, पत्र के दाँयी ओर लिखी जानी चाहिए।

सम्बोधन : ऐसे पत्रों में दोनों ओर से पृथक-पृथक लिखा जाता है। माता-पिता अथवा सम्बन्धियों के लिए पूज्य/पूज्या शब्द प्रयोग किया जाता है। पूज्य दादाजी/पिताजी/नानाजी, मामाजी/चाचाजी/मौसाजी तथा दादीजी, नानी जी, माताजी/मामीजी, चाचीजी, मौसीजी आदि ।

बड़े भाई-बहनों के लिए आदरणीय भाई साहब, बहन जी या भ्राता जी आदि।

समान अवस्था वालों के लिए-प्रिय बंधु, प्रिय रवीन्द्र, श्रेय, श्रुति, आशना, स्नेहमयी जूली आदि।

अभिवादन : हिन्दी में अभिवादन अनिवार्य है। यह पारस्परिक सम्बन्ध एवं अवस्था के अनुसार पत्रों में अलग-अलग होता है। माता/पिता तथा उनके समान आदरणीय सम्बन्धियों को अभिवादन स्वरूप सादर प्रणाम, बड़े भाई-बहन के लिए सादर नमस्ते। छोटे अथवा समवयस्क लोगों के लिए सप्रेम नमस्ते।

पुत्र अथवा समवयस्क सम्बन्धियों के लिए चिरंजीव रहो, प्रसन्न रहो। ये शब्द सम्बोधन के बाद की दूसरी पंक्ति में कुछ स्थान छोड़कर लिखे जाने चाहिए।

कलेवर : इसमें वे सभी बातें शामिल हैं जो लेखक पत्र में लिखना चाहता है। इसे आवश्यकतानुसार अनुच्छेदों में बाँटा जा सकता है। इसमें व्यर्थ की बातों को स्थान नहीं दिया जाता। यदि पत्र में बेकार की बातें भर दी जायेंगी, तो पत्र बेकार में बड़ा बन जायेगा तथा तब पत्र-पत्र न रहकर पोथी हो जायेगा।

स्वनिर्देश : अपने सम्बन्ध में उल्लेख करना। इसमें पत्र के लेखक की ओर से, पाने वाले से सम्बन्ध के अनुसार कलेवर की समाप्ति के पश्चात् उससे अगली पंक्ति में, दाँयी ओर माता-पिता के लिए आपका प्रिय पुत्र, बड़े भाई/बहन के लिए प्रिय-अनुज/छोटा भाई/स्नेह भाजन आदि लिखना चाहिए। सम-वयस्क के लिए शुभ चिन्तक।

हस्ताक्षर : अंत में लेखक द्वारा हस्ताक्षर करना अनिवार्य है।
इसके अतिरिक्त हम पत्र लिखने का निर्देश भी दे सकते हैं। इसमें पाने वाले का पता स्पष्ट अक्षरों में लिखना चाहिए।

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