सार्थक शब्द, निरर्थक शब्द, शब्द किसे कहते हैं, शब्द के भेद, कोशीय शब्द

शब्द किसे कहते हैं, शब्द के कितने भेद होते हैं, सार्थक शब्द, निरर्थक हमने इस आर्टिकल में शब्द की पूरी जानकारी देने का प्रयास किया है.

शब्द किसे कहते हैं

दो या दो से अधिक अक्षरों के सार्थक योग को शब्द कहते हैं।” जैसे – रुपया, सोना, प्रेम, शहर, सरकार आदि। शब्द दो प्रकार के होते हैं-सार्थक तथा निरर्थक। जैसे-रोना-धोना, चाय-वाय, रोटी-बोटी, खेल-वेल आदि। यहाँ रोना, धोना, चाय, रोटी, खेल का प्रयोग सार्थक तथा बोटी तथा बेल आदि शब्द निरर्थक हैं। ऐसे शब्दों का कोई कोशीय अर्थ नहीं है।

व्याकरण में केवल सार्थक शब्दों का प्रयोग होता है।

शब्द कितने प्रकार के होते है

व्याकरण में शब्द मुख्यतः दो प्रकार होते हैं

  1. सार्थक शब्द
  2. निरर्थक शब्द

सार्थक शब्द किसे कहते हैं ?

सार्थक शब्द – जिन शब्दों का जीवन तथा कोश में कोई निश्चित अर्थ होता है, वे सार्थक होते हैं। इन शब्दों का एक निश्चित अर्थ होता है तथा ऐसे कई सार्थक शब्दों का क्रमबद्ध और व्यवस्थित प्रयोग वाक्य कहलाता है।

निरर्थक शब्द किसे कहते हैं ?

निरर्थक शब्द – जीवन एवं कोश में जिन शब्दों का कोई अर्थ तथा उपयोगिता नहीं होती वे निरर्थक शब्द कहलाते हैं।

अर्थ का ज्ञान हमें श्रवणेन्द्रिय (कान) द्वारा होता है। जन्म के बाद से ही मानव मन पर सम्पर्क में आने वाली प्रत्येक वस्तु एवं व्यक्ति का चित्र अंकित हो जाता है। इसका गहरा प्रभाव स्मरण मात्र से ही सब कुछ स्पष्ट कर देता है।

भाषा में शब्द और अर्थ का गहरा सम्बन्ध होता है। अर्थ के अभाव में भाषा का कोई महत्व नहीं होता। इस प्रकार अर्थ शब्द रूपी शरीर की आत्मा है। शब्द जिस प्रकार से वाक्य का अभिन्न अंग है ठीक उसी प्रकार अर्थ भी शब्दों का अविभाज्य पक्ष है। स्मरण मात्र से ही दूर रहने पर भी वस्तु का चित्र उपस्थित हो जाता है।

अर्थबोध के आठ साधन हैं-(i) व्यवहार, (ii) आप्त वाक्य, (iii) उपमान, (iv) प्रकरण, (v) व्याख्या, (vi) प्रसिद्ध पद, (vii) व्याकरण, (viii) कोश। यहाँ हम अन्तिम दो साधनों पर ही विचार करेंगे।

कोशीय और व्याकरणिक शब्द

अर्थ ज्ञान के कार्य में व्याकरण का बहुत अधिक महत्व है। इसका महत्व कोश से भी अधिक है। मूल शब्दों से बने या निकले शब्दों का उल्लेख एवं अर्थ व्याकरण की सहायता से ही जाना जाता है। जैसे- ‘कौशलेश’ का अर्थ ‘कौशल’ (अयोध्या) के स्वामी ‘दशरथ’ तथा ‘ब्रज चन्द्र’ (ब्रज के चन्द्र) श्रीकृष्ण के लिए है। अत: संक्षेप में भाषा के व्याकरण ज्ञान और अर्थ बोध के लिए व्याकरण आवश्यक है।

भाषा में कुछ शब्द ऐसे भी होते हैं जो हमारे लिए नितांत अनजान होते हैं। इस प्रकार व्याकरण शब्द के प्रयोग पक्ष को स्पष्ट करता है और कोश शब्द के अर्थ पक्ष को।

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