आज हम आपको शब्द के बारे में बताएँगे की शब्द किसे कहते हैं तथा शब्द के कितने भेद होते हैं तत्सम शब्द, तदभव शब्द इन सभी के बारे में हमने विस्तार से बताया है तो कृप्या अंत तक पढ़ें आपको जरुर समझ आएगा.
शब्द किसे कहते हैं
जिन वर्णों का निर्माण अर्थपूर्ण ध्वनियों के समूह से होता है, उन्हें शब्द कहते हैं।”शब्द वाक्य में दूसरे शब्दों से मिलकर अपना रूप सम्भाल लेता है। शब्दों की रचना ध्वनि और अर्थ के भेद से होती है। अतः शब्द मुख्य रूप से ध्वन्यात्मक होते हैं या वर्णात्मक। व्याकरण में ध्वन्यात्मक शब्दों की अपेक्षा वर्णात्मक शब्दों का अधिक महत्व है।
सामान्यतः शब्द दो प्रकार के होते हैं – सार्थक और निरर्थक । सार्थक शब्दों के अर्थ होते हैं जबकि निरर्थक शब्दों के अर्थ नहीं होते। निरर्थक शब्द ध्वन्यात्मक तो होते हैं किन्तु अर्थहीन होते हैं। जैसे-‘आगा’ सार्थक है और ‘गआ’ निरर्थक शब्द है क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं।
शब्दों में परिवर्तन होते रहना भाषा की स्वाभाविक क्रिया है। इसी से किसी भाषा के जीवित होने का प्रमाण मिलता है। समय के साथ संसार की सभी भाषाओं के रूप बदलते हैं। हिन्दी भाषा भी इस नियम का अपवाद नहीं है। संस्कृत के अनेक शब्द हिन्दी में आए हैं। इनमें कुछ शब्द अपने मूल रूप में ज्यों के त्यों हैं जबकि कुछ देश काल एवं अन्य परिस्थितियों की आवश्यकता के कारण बदल गए हैं।
उत्पत्ति के विचार से शब्दों का वर्गीकरण
उत्पति के आधार पर शब्द चार प्रकार के होते हैं
- तत्सम
- तद्भव
- देशज
- विदेशी
तत्सम शब्द किसे कहते हैं
तत्सम-“किसी भाषा के मूल शब्द को तत्सम कहते हैं।
तत्सम | हिन्दी |
आम्र | आम |
अस्थि | हड्डी |
अग्र | आगे |
अग्नि | आग |
अक्षि | आँख |
ओष्ठ | ओंठ |
एकत्र | इकट्ठा |
उच्च | ऊँचा |
उष्ट्र | ऊँट |
कपाट | किवाड़ |
कपोत | कबूतर |
चतुर्थ | चौथा |
घोटक | घोड़ा |
तिक्त | तीता |
शत | सौ |
सपत्नी | सौत |
पर्यंक | पलँग |
श्रोता | दर्शक |
द्वितीय | दूसरा |
तद्भव शब्द किसे कहते हैं
ऐसे शब्द जो संस्कृत और प्राकृत से परिवर्तित होकर हिन्दी में आये हैं, तद्भव कहलाते हैं।” तत् + भव का अर्थ है- उससे (संस्कृत से) उत्पन्न। ये शब्द संस्कृत से सीधे न आकर पालि, प्राकृत और अपभ्रंश से होते हुए हिन्दी में आए हैं। इन शब्दों का रूप अपने प्राकृत शब्दों के मूल रूप से थोड़ा बदला हुआ होता है। उदाहरण- अटारी, आँख, छेद, दुबला आदि तद्भव शब्द हैं।
देशज शब्द किसे कहते हैं
वे शब्द जिनकी उत्पत्ति का पता नहीं लगता, देशज या देशी शब्द कहलाते हैं।” जैसे- चिड़िया, कटरा, कटोरा, खिड़की, ठुमरी, जूता, कलाई, फुकनी, खिचड़ी, पगड़ी, लोटा, डिबिया, झंझट, लफड़ा, भोंदू, अटकल, खाट, थूक, ठेठ, डाब, भर्राटा, धड़ल्ले, धाँसू इत्यादि।
विदेशी शब्द किसे कहते हैं
विदेशी भाषाओं से हिन्दी भाषा में आने वाले शब्दों को विदेशी शब्द कहते हैं।” इनमें फारसी, अरबी, तुर्की, अंग्रेजी, पुर्तगाली और फ्रांसीसी भाषाएँ मुख्य हैं। अरबी, फारसी और तुर्की के शब्दों को हिन्दी ने अपने उच्चारण के अनुकूल बना लिया है।
रचना
शब्दों अथवा वर्गों के मेल से नये शब्दों के बनने की क्रिया को ‘रचना या बनावट’ कहते हैं। कई वर्षों के मेल से शब्द का निर्माण होता है। इसके छोटे अंश को शब्दांश कहते हैं।” जैसे-‘राम’ शब्द में दो खण्ड हैं-‘रा’ और ‘म’। इसके विपरीत कुछ शब्द ऐसे भी हैं, जिनके दोनों भागों के अलग-अलग भी अर्थ होते हैं। जैसे- हिमालय-हिम और आलय, सागरतट दोनों खण्डों का अलग-अलग भी अर्थ और महत्व है।
रचना के आधार पर शब्द के भेद
रचना के आधार पर शब्द के तीन प्रकार हैं-
- रूढ़ शब्द
- यौगिक शब्द
- योगारूढ़ शब्द
रूढ़ शब्द
जिन शब्दों के अंश सार्थक नहीं होते, उन्हें रूढ़ कहते हैं।” जैसे- नाक, कान, पीला, झट, पर। यहाँ प्रत्येक शब्द के खण्ड जैसे-‘ना’ और ‘क’, ‘का’ और ‘न’ अर्थहीन है।
यौगिक शब्द
वे शब्द जो दो सार्थक शब्दों के मेल से बनते हैं, यौगिक शब्द कहलाते हैं।” जैसे- लाल-पीला, पीला-पन, मिठाई-वाला, चालबाज, छल-कपट, घुड़-सवार आदि। यहाँ प्रत्येक शब्द का खण्ड भी सार्थक है।
योगारूढ़
ऐसे शब्द जो यौगिक तो होते हैं, परन्तु अर्थ के विचार से अपने साधारण अर्थ को छोड़कर किसी परम्परा वाले विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं, योगारूढ़ शब्द कहलाते हैं। जैसे- लम्बोदर, मुरलीधर, नीलकंठ, पंकज, शूल पाणि आदि। पंक + ज (कीचड़ में) उत्पन्न, जबकि इससे केवल कमल का अर्थ लिया जाता है।