व्यंजन किसे कहते हैं
जिन वर्गों के उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती है, उन्हें व्यंजन कहते हैं। प्रत्येक ऐसे वर्ण के उच्चारण में ‘अ‘ की ध्वनि छिपी रहती है। इसके अभाव में व्यंजन का उच्चारण सम्भव नहीं है। जैसे – च + अ = ‘च’। छ + अ = छ।
व्यंजन -“इस ध्वनि के उच्चारण में भीतर से आने वाली वायु, मुख में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में रुकती है। स्वर वर्ण स्वतंत्र हैं जबकि व्यंजन वर्ण किसी न किसी रूप में स्वर वर्णों पर आश्रित है।” हिन्दी में व्यंजन वर्णों की संख्या 41 है जिनमे 2 उत्क्षिप्त व्यंजन, 2 अयोगवाह और 4 संयुक्ताक्षर व्यंजन हैं कुल मिलाकर 41 व्यंजन होता हैं। इनकी निम्नवत् श्रेणियाँ हैं-
- स्पर्श व्यंजन
- अन्तस्थ व्यंजन
- ऊष्मव्यंजन
स्पर्श व्यंजन | Sparsh Vyanjan
इन वर्णों का उच्चारण कंठ, तालु, मूर्द्धा, दंत और ओष्ठ आदि स्थानों के स्पर्श से होता है। इसी कारण इन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं।”स्पर्श व्यंजन निम्न वर्गों में विभक्त हैं।
‘क’ वर्ग : क, ख, ग, घ, ङ।
‘च’ वर्ग : च, छ, ज, झ, ञ।
‘ट’ वर्ग : ट, ठ, ड, ढ, ण।
‘त’ वर्ग : त, थ, द, ध, न।
संयुक्त व्यंजन | Sanyukt Vyanjan
जो व्यंजन 2 या 2 से अधिक व्यंजनों के मिलने से बनते हैं उन्हें संयुक्त व्यंजन कहा जाता है। संयुक्त व्यंजन एक तरह से व्यंजन का ही एक प्रकार है। संयुक्त व्यंजन में जो पहला व्यंजन होता है वो हमेशा स्वर रहित होता है और इसके विपरीत दूसरा व्यंजन हमेशा स्वर सहित होता है। संयुक्त व्यंजन की कुल संख्या चार है : क्ष, त्र, ज्ञ, श्र।
द्विगुण व्यंजन
ऐसे व्यंजन जिनमे दो गुण होता है उन्हें द्विगुण व्यंजन कहते हैं. जैसे : ड, ढ़।
अंतस्थ व्यंजन
अन्तस्थ व्यंजन चार हैं – य, र, ल, व। इनका उच्चारण जीभ, तालु, दाँत और ओष्ठों के सटाने से होता है। किन्तु पूर्णतः स्पर्श के अभाव में ये व्यंजन ‘अर्द्धस्वर‘ कहलाते हैं।
ऊष्म व्यंजन
इन व्यंजनों का उच्चारण एक प्रकार की रगड़ से उत्पन्न ऊष्म वायु से होता है। उष्म व्यंजन चार होते हैं -श, ष, स, ह।
अल्पप्राण और महाप्राण
उच्चारण में वायु टकराने के विचार से व्यंजनों के दो भेद हैं-(i) अल्प्रपाण, (ii) महाप्राण।
अल्प्रपाण व्यंजन किसे कहते हैं
जिन वर्णों के उच्चारण में श्वास मुख से सीमित रूप में निकली है तथा जिसमें ‘हकार‘ जैसी ध्वनि नहीं होती, उन्हें ‘अल्प-प्राण‘ व्यंजन कहते हैं। प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ वर्ण अल्प-प्राण होता है। जैसे – क वर्ग में -क, ग, ङ। च वर्ग में – च, ज, ञ। ट वर्ग में – ट, ड, ण। त वर्ग में – त, द,न। प वर्ग में – प, ब, म।
महाप्राण व्यंजन किसे कहते हैं
इन व्यंजनों के उच्चारण में ‘हकार‘ जैसी ध्वनि विशेष रूप में निकलती है तथा श्वास भी निकलती है। प्रत्येक वर्ग का 2 तथा 4 वर्ण महाप्राण व्यंजन होता है। जैसे क वर्ग में – ख तथा घ महाप्राण व्यंजन हैं। ऐसे ही च वर्ग में – छ तथा झ। ट वर्ग में – ठ तथा ढ़। त वर्ग में – थ तथा ध। प वर्ग में – फ तथा ल। श वर्ग में – ष, स, तथा ह।
घोष व्यंजन
आवाज के विचार से जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में स्वर-तन्त्रियाँ गूंजने लगती हैं, वे ‘घोष‘ व्यंजन कहलाते हैं। घोष’ में ‘स्वर’ का उपयोग होता है.
घोष वर्ण – प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा और पाँचवाँ वर्ण, सारे स्वर वर्ण तथा य, र, ल, व और ह आदि ,घोष वर्ण हैं।
अघोष व्यंजन
जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वर तंत्रियों में ऐसी गूंज नहीं होती वे अघोष‘ व्यंजन कहलाते हैं। अघोष’ में केवल श्वांस का उपयोग होता है. अघोष वर्ण – क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, स ये सभी अघोष वर्ण हैं।
जिन वर्गों के उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती है, उन्हें व्यंजन कहते हैं।
33 मूल व्यंजन होते हैं , 2 उत्क्षिप्त व्यंजन, 2 अयोगवाह और 4 संयुक्ताक्षर व्यंजन हैं कुल मिलाकर 41 व्यंजन होता हैं.