वर्तनी, वर्तनी के नियम | vartani in hindi

वर्तनी ( vartani )

वर्तनी – किसी भी भाषा में वर्गों के लिखने के ढंग को वर्तनी कहते हैं। इसे उर्दू भाषा में हिज्जे (Spelling) भी कहा जाता है। भाषा के समस्त वर्णों को बोलने के लिए भी वर्तनी में एकरूपता निश्चित की जाती है। जिस भाषा में अपनी भाषा के अतिरिक्त अन्य भाषा के शब्दों को अपनाने की जितनी अधिक योग्यता होती है, वह भाषा उतनी ही अधिक मजबूत तथा जीवित कहलाती है, अत: वर्तनी का सीधा सम्बन्ध भाषा की ध्वनियों के बोलने से होता है। vartani in hindi

वर्तनी के नियम

(1) हिन्दी के विभक्ति चिह्न, सर्वनामों के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में अलग लिखे जाएँगे। जैसे-गजेन्द्र ने कहा, लड़की को। सर्वनाम में-उसे, मैंने, हममें, तुमसे, तुम पर, उनको किस पर, आपको।

अपवाद
(क) यदि सर्वनाम के साथ दो विभक्ति चिह्न हों, तो उनमें पहला सर्वनाम से मिला हो और दूसरा पृथक लिखा जाए। जैसे-उनके लिए, हमारे साथ, इसके द्वारा।

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(ख) सर्वनाम और उसकी विभक्ति के बीच ही, तक आदि अव्यय में स्वर लहर हो तो विभक्ति अलग लिखी जाय। जैसे-उन ही के लिए, उस तक को।

(2) संयुक्त क्रियाओं में सभी क्रियाएँ अलग रखी जाएँ। जैसे-सोया करता है, खा लेगा, जा सकता है।

(3) ‘तक’, ‘साथ’ आदि अव्यय अलग-अलग लिखे जाएँ। उनको सम्मिलित रूप में न लिखा जाये। जैसे-उनके साथ, वहाँ तक।

(4) पूर्वकालिक प्रत्यय ‘कर’ क्रिया से मिलाकर लिखा जाए। जैसे-बुलाकर, नहाकर, पकाकर, जाकर, खाकर, सोकर।

(5) द्वन्द्व समास में पदों के बीच हाइफन (-) योजक निशान लगाया जाये। जैसे-राम-लक्ष्मण, कृष्ण-बलराम, माता-पिता गणेश-लक्ष्मी आदि।

(6) ‘सा’ जैसा आदि सारूप्यवाचकों के पूर्व हायफन (-) योजक निशान का प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे-चीते-सा-चपल, मोहन-जैसा, चाकू-सा तीखा आदि।

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(7) तत्पुरुष समास में हाइफन का प्रयोग केवल उसी दिशा में किया जाये, जहाँ उसके अभाव में भ्रम की संभावना हो, अन्यथा नहीं। जैसे-आकाश-तत्व, धनिक- -कुमार।

(8) ‘ये‘ ‘तथा ‘ए’ के प्रयोग के सम्बन्ध में प्रश्न छात्र ही नहीं विद्वानों को भी कभी-कभी भ्रमित कर देता है। जहाँ तक इन दोनों शब्दों के उच्चारण का प्रश्न है, दोनों के उच्चारण भेद निम्नवत् हैं-
ये (य + ए) श्रुतिरूप। तालव्य अर्द्धस्वर (अन्तःस्थ) + ए। ए = अग्र अर्द्ध संवृत दीर्घ स्वर।

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वर्तनी नियम

ये‘ और ‘‘ का प्रयोग अव्यय, क्रिया तथा शब्दों के बहुवचन बनाने में किया जाता है। ये प्रयोग क्रियाओं के भूतकालिक रूपों में होते हैं। लोग इन्हें कई रूप में लिखते हैं-आई-आयी, आए-आये, गई-गयी, गए-गये, हुआ-हुवा, हुए-हुवे इत्यादि। एक क्रिया की दो अक्षरी प्रवृत्ति आज भी चल रही है। इस सम्बन्ध में कुछ नियम इस प्रकार हैं-

(क) जिस क्रिया के भूतकालिक पुल्लिंग एकवचन रूप में याअंत में आता है, उसके बहुवचन का रूप ये और तद्नुसार एकवचन स्त्रीलिंग में यी का प्रयोग होना चाहिए।

(ख) जिस क्रिया के भूतकालिक पुल्लिंग एकवचन के रूप के अंत में आ जाता है, उसके पुल्लिंग बहुवचन में ‘ए’ का प्रयोग होगा और स्त्रीलिंग एकवचन में ‘ई’। हुआ का स्त्रीलिंग एकवचन हुई, बहुवचन ‘हुईं’ और पुल्लिंग बहुवचन हुए’ होगा और कुछ नहीं।

(ग) दे, ले, पी, कर-इन चार धातुओं को ह्रस्व इकार कर फिर दीर्घ करने पर इए प्रत्यय लगाने पर उनकी विधि क्रियाएँ इस प्रकार बनती हैं- दे (दि) + ज् + इए = दीजिए
ले (लि) + ज् + इए = लीजिए
पी + ज् + इए = पीजिए
कर (कि) + ज् + इए = कीजिए.

(घ) अव्यय को प्रथक रखने के लिए ‘ए’ का प्रयोग होना चाहिए। जैसे-इसलिए, चाहिए। सम्प्रदान विभक्ति के लिए’ में भी ‘ए’ का प्रयोग होना चाहिए-श्याम के लिए कपड़े लाओ।

(ङ) विशेषण शब्द का अन्त जैसा हो, वैसा ही ‘ये’ तथा ‘ए’ का प्रयोग होना चाहिए। जैसे-‘नया’ शब्द के बहुवचन ‘नये’ तथा स्त्रीलिंग में ‘नयी’, ‘रोता हुआ’ आदि है तो बहुवचन में जाते हुए’ तथा स्त्रीलिंग में रोती हुई’ होगा।

इन नियमों से हमें यह पता चलता है कि भूतकालिक क्रियाओं में ‘ये’ तथा अव्ययों में ‘ए’ न का प्रयोग होता है। विशेषण का रूप अंतिम वर्ण के अनुसार ‘ये’ तथा ‘ए’ होना चाहिए। वर्तनी

(9) संस्कृत मूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी में सामान्य रूप में संस्कृत रूप का ही प्रयोग होना चाहिए। परन्तु जिन शब्दों के प्रयोग में हलंत् वाला चिह्न, प्रयोग से हट गया है, उसमें हलन्त् का प्रयोग न किया जाए। जैसे-सम्मान, विद्वान, भगत, भगवान आदि। संधि तथा छंद के प्रयोग को स्पष्ट करने के लिए इनके साथ ‘हलंत’ का प्रयोग अनिवार्य है। जैसे-जगत् + नाथ। ( vartani in hindi )

(10) वर्ग के अंतिम वर्ण के बाद उसी वर्ग के अन्य अक्षरों (शेष चार) में से किसी का प्रयोग हो तो ‘अनुस्वार’ का ही प्रयोग होना चाहिए-वंदना, दशरथ नंद नंदन, संत, गंगा, कंपन, चंपक, कंबल आदि।

(11) नहीं, मैं, हैं में इत्यादि के ऊपर लगी मात्राओं के अतिरिक्त शेष आवश्यक स्थानों पर ‘चन्द्र बिन्दु’ का ही प्रयोग करना चाहिए अन्यथा हंस और हँस तथा अँगना और अंगना का भेद स्पष्ट न हो सकेगा।

(12) अरबी-फारसी’ के शब्द जो हिन्दी के अंग बन चुके हैं तथा जिनकी ध्वनियों का हिन्दी में परिवर्तन हो चुका है, उन्हें हिन्दी-रूप में ही स्वीकार किया जाये। जैसे-जरूर, कागज आदि। किन्तु जहाँ उसका प्रयोग विदेशी रूप में ही होता है, वहाँ उनके हिन्दी रूपों में आवश्यक स्थानों पर नुक्ते लगाए जायें। जैसे-फाका, साज़िश, राज़।

(13) अंग्रेजी के जिन शब्दों में अर्द्ध ‘ओ’ की ध्वनि का प्रयोग हो वहाँ हिन्दी में उनके अभीष्ट रूप का प्रयोग करते समय ‘आ’ अर्द्धचन्द्र का प्रयोग किया जाये। जैसे-डॉक्टर, हॉबी, स्टॉल, कॉलेज, मॉल आदि। ( vartani in hindi )

(14) संस्कृत के जिन शब्दों में विसर्ग’ का प्रयोग होता है, शुद्ध रूप में उनके हिन्दी प्रयोग की दशा में विसर्ग का प्रयोग अवश्य किया जाये। जैसे-स्वांतः सुखाय, दुःख। किन्तु उस शब्द के ‘तद्भव’ रूप में विसर्ग का लोप होने की दशा में विसर्ग का प्रयोग आवश्यक नहीं।

(15) हिन्दी में ‘ऐ’ ओर औ’ का प्रयोग दो प्रकार की ध्वनियों को प्रयोग करने के लिए होता है। पहले वर्ग की ध्वनियाँ है’, ‘और’ ‘आदि’ में हैं तथा दूसरे प्रकार की ‘गवैया’, ‘कौआ’ आदि।

हिन्दी भाषा का इतिहास

भाषा की परिभाषा

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