लाइकेन क्या है | लाइकेन के प्रकार, लक्षण | Lichen ki Paribhasha

लाइकेन क्या है

यह दो पूर्णतः भिन्न वनस्पतियों से निर्मित एक द्वैध पादप है। लाइकेन एकल जीव नहीं है बल्कि ये संयुक्त जीव हैं यह कवक (Fungi) तथा शैवाल (Algae) के परस्पर सहजीवी सम्बंध (Symbiotic) का परिणाम है। लाइकेन का मुख्य भाग कवकों से निर्मित होता है, जो शैवाल के ऊपर एक तंतुवत आवरण का निर्माण करते हैं।

इस सहजीवन में कवक शैवालों को जल, खनिज लवण, विटामिन आदि मृदा से प्राप्त करने में मदद करते हैं, जबकि शैवाल प्रकाश संश्लेषण के द्वारा कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करके कवकों को पोषण प्रदान करते हैं। कवक एवं शैवाल के मध्य यह सहजीवी सम्बंध हेलोटिज्म (Helotism) कहलाता है तथा लाइकेन के अध्ययन की वैज्ञानिक शाखा लाइकेनोलॉजी (Lichenology) कहलाती है।

लाइकेन के प्रकार

आकार एंव संरचना के आधार पर लाइकेन तीन प्रकार के होते हैं

  1. क्रस्टोज (Crustose)
  2. फोलिओज (Foliose)
  3. टिकोज (Fruticose)

क्रस्टोज लाइकेन

ये लाइकेन मुख्यतः द्विआयामी होते हैं। इनमें थैलस अत्यंत चपटा होता है जो आधार स्तर से पूर्णतः जुड़ा (Firmly Attached) होता है। ये एक पर्पटी (Crust) के समान दिखाई देते हैं।

फोलिओज लाइकेन

ये लाइकेन संरचनात्मक रूप से पत्तियों के समान होते हैं। ये अपने आधार स्तर से शिथिलता से जुड़े होते हैं। फ्रूटीकोज लाइकेन ये लाइकेन क्रस्टोस एवं फोलिओज की अपेक्षा अधिक विकसित होते हैं। इनमें कोई विशिष्ट शीर्ष अथवा मूल संरचना नहीं होती है। इनमें बहुशाखाएँ (Multiple Branches) होती हैं जो छोटी झाड़ी के समान सीधे अथवा नीचे की ओर लटकी हुई हो सकती हैं।

लाइकेन का आर्थिक महत्व

प्रदूषण सूचक (Indicators of Pollution) : लाइकेन वातावरणीय प्रदूषकों के प्रति अति संवेदनशील होते हैं। ये प्रदूषणयुक्त स्थानों जैसे-शहरों, कस्बों, औद्योगिक क्षेत्रों आदि में नहीं उग सकते हैं क्योंकि इन स्थानों पर वायु प्रदूषण अधिक होता है।

भोजन एवं चारे के रूप में प्रयोग : लाइकेन विभिन्न जीवों के द्वारा भोजन के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।  घुन (Mites), इल्लियाँ (Caterpillars), दीमक (Termites) आदि लाइकेन से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। जाइरोफोरा एस्क्यूलेंटा (Gyrophora Esculenta) चीन तथा जापान में खाद्य पदार्थ के रूप में प्रयोग किया जाता है। सेटेरिया आइ सलैंडिका (Cetraria Islandica) का प्रयोग आइसलैण्ड एवं स्कैंडिनेवियाई देशों में किया जाता है।

एन्डोकार्पन (Endocarpon) का प्रयोग जापान में सब्जी के रूप में किया जाता है। परमेलिया (Permalia) अथवा रॉक फ्लावर का प्रयोग दक्षिण भारत में सालन (Curry) बनाने में किया जाता है।

संश्लिष्ट रंगों के निर्माण में : ऑरकिल, रॉकसेला, लेकानोरा नामक लाइकेन से नीले रंग का निर्माण किया जाता है। कुछ लाइकेन चमड़ा उद्योग में टैनिंग के लिए, ऊनी एवं रेशम वस्त्रों को रंगने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

विभिन्न औषधियों के स्रोत : लाइकेन का प्रयोग बहुत पहले से ही ज्वर, पीलिया, हैजा एवं त्वचा सम्बंधी विभिन्न रोगों के उपचार हेतु किया जाता रहा है। विभिन्न लाइकेन एवं उनका औषधीय महत्व निम्नवत् है –

लाइकेन उपयोग
लोबेरिया पल्मोनेरिया तथा सेटेरेरिया आइसलैण्डिका श्वसन सम्बंधी रोगों के आधार हेतु (विशेषत: टी.बी.)
यूस्निया बरबटा बालों की दृढ़ता के लिए
जैथोरिया पैरिएटिना  पीलिया के उपचार में
क्लैडोनिया ज्वर के उपचार में

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