मूल शब्द किसे कहते हैं
इन शब्दों का निर्माण दूसरे शब्दों से नहीं होता। जैसे- नाक, कान, मुँह, पेट आदि। इन शब्दों के शब्दांश सार्थक नहीं होते। अत: ये शब्द मूल हैं।
यौगिक शब्दों का निर्माण दो प्रकार से होता है। शब्दों के मेल से या शब्दांश के मेल से। शब्दांश दो प्रकार के होते हैं- उपसर्ग और प्रत्यय।
उपसर्ग किसे कहते हैं
उपसर्ग उस शब्दांश या अव्यय को कहते हैं जो किसी शब्द से पूर्व प्रयोग में आकर उसका विशेष अर्थ प्रकट करता है।” उस शब्द के अर्थ को पूर्णत: या अंशत: बदल देता है। यह दो शब्दों (उप + सर्ग) के योग से बनता है। ‘उप’ का अर्थ समीप, निकट या पास में है। सर्ग का अर्थ है सृष्टि करना।
उपसर्ग का अर्थ है-पास में बैठकर दूसरे नये अर्थ वाले शब्द की रचना करना। जैसे– हार से प्र शब्द जोड़कर ‘प्रहार’ बन गया। इसी प्रकार उप जोड़ने से उपहार हो गया। इनमें से प्रथम शब्द का अर्थ हुआ-मारना तथा दूसरे का अर्थ है- भेंट।
उपसर्गों का स्वतंत्र अस्तित्व न होते हुए भी वे अन्य शब्दों से मिलकर विशेष अर्थ वाले शब्द का निर्माण करते हैं। उपसर्ग शब्द से पूर्व आकर नया शब्द बनाते हैं। ‘अन‘ उपसर्ग का प्रयोग ‘बन’ शब्द से पूर्व करने पर एक नया शब्द बन गया-अनबन। कुछ शब्दों के प्रयोग से शब्द के मूल अर्थ में परिवर्तन न आकर उसमें तीव्रता आती है। जैसे- ‘भ्रमण‘ शब्द से पूर्व परि‘ लगाने से अर्थ में अंतर न आकर तेजी आयी।
उपसर्ग का प्रभाव
(i) शब्दों के अर्थ में नयापन आता है।
(ii) शब्द के अर्थ में कोई भिन्नता नहीं होती।
(iii) अर्थ में विरोध उत्पन्न हो जाता है।
यहाँ ‘उपसर्ग‘ तथा शब्दों का अंतर समझना आवश्यक है। ‘शब्द‘ वर्गों का एक समूह है जो अपने में स्वतंत्र है तथा वाक्यों में स्वतंत्रता पूर्वक प्रयोग होता है। दूसरी ओर उपसर्ग अक्षरों का समूह होते हुए भी स्वतंत्र नहीं और न स्वतंत्र रूप में इसका प्रयोग सम्भव है। हिन्दी में इस प्रकार की कोई भिन्नता नहीं। हिन्दी भाषा में उपसर्ग योजना व्यापक अर्थ में हुई है.
प्रत्यय किसे कहते हैं
शब्दों के बाद जो अक्षर या अक्षरों का समूह प्रयोग किया जाता है, उसे प्रत्यय कहते हैं। ‘प्रत्यय‘ (प्रति + अय) से बना है। यहाँ प्रति का अर्थ साथ पर बाद में है और अय का अर्थ चलने वाला है। अतः प्रत्यय का अर्थ है-शब्दों के बाद चलने वाला।
प्रत्यय के भेद – प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं- (क) कृत् (ख) तद्धित। इनसे शब्दों की रचना होती है।
कृदन्त
क्रिया या धातु के अंत में प्रयुक्त होने वाले प्रत्ययों को कृत्‘ प्रत्यय कहते हैं तथा इस मेल से बने शब्दों को कृदन्त कहते हैं। ये कृदन्त क्रिया या विशेषण को नया रूप देते हैं। इनसे संज्ञा या विशेषण बनते हैं। उदाहरण –
कृत्’ प्रत्यय | क्रिया | शब्द |
खाना | खाना | खाने वाला |
हार | होना | होनहार |
ऐया, वैया | लेना | लिखवैया, खिलैया |
इया | छलना | छलिया |
कृदन्त के भेद
हिन्दी के रूप के विचार से कृदन्त के दो भेद हैं- विकारी तथा अविकारी। विकारी कृदन्तों का प्रयोग प्रायः संज्ञा या विशेषण के समान होता है जबकि कृदन्त अव्यय का प्रयोग क्रिया विशेषण या कभी-कभी सम्बन्ध सूचक के समान होता है।
विकारी कृदन्त के चार भेद हैं- 1. क्रियार्थक संज्ञा, (2) कर्तृवाचक संज्ञा, (3) वर्तमान कालिक कृदन्त, (4) भूतकालिक कृदन्त। हिन्दी क्रिया पदों के अंत में कृत् प्रत्ययों के योग से कर्तृवाचक, कर्मवाचक, भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं। इनके साथ ही कर्तृवाचक और क्रियाओं तक दो प्रकार के विशेषण बनते हैं।
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